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Cricket

Game of a billion, joyous heart and soul 
Need but a few friends, a bat and a ball 
Born in the cold, bitter foreign isle
Thrived on Indian soil, warm and fertile
Famed are the heroes, glorious it's lore
Poet names a few but loves many more
God's straight drive, comes to mind at first
Second is defiant, Dada's flying shirt
Jumbo's ten on ten and Yuvi's six on six
Viru's triple tons or Bhajji's magic tricks
Nothing speaks more of Cricket India's gall
Walliantly unfazed, the great Indian "Wall"

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एक पूरानी कविता

है चाह बस इतनी की हर सर ऊँचा रहे,  आग सिर्फ दिए में हो, महफूज़ हर कूँचा रहे; रहे हिफाज़त से हर ज़िन्दगी, घर की माँ-बेटी-बहु; रोटी और ज्यादा सस्ती हो और महँगा हो इन्सान का लहू. ज़ात पूछे बिना खाना खिलाया जाए धर्म जाने बिना साथ बैठाया जाए रंग और जन्म का फर्क हटा दें लायक को ही नायक बनाया जाए ज़िन्दगी बेशकीमती सिर्फ किताबों में न रहे ज़ालिम आकाओंकी पनाहों में न रहे मजलूम, मजबूर न हो खूँ पीनेको  सितमगरका सुकूनो इज़्ज़त से मैं भी रहूं रोटी और ज्यादा सस्ती हो और हो सके उतना महँगा हो इन्सान का लहू It was 2001 and I was in my final year of B.Sc. I had always been inclined towards theatres and plays & there was an opportunity to perform in our college. I don't really remember whether it was a youth-festival or some other program but I do remember that I had written this play. The play was about a mental asylum that portrayed the civil society and it's complexity. Play had various characters like politicians, police, municipal workers, doctor, teacher and other members of a...

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खुशबुने कहा

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