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Showing posts from September, 2020

और प्यार में क्या पाया

जीवनकी हर मुश्किलका हल, मेरी कवितायेँ और ग़ज़ल पा जाता हूँ जब सुनता हूँ, तेरे कंगन तेरी पायल दर्पणमें देखूं छब तेरी, मैं खुदका नक्श भुला आया एक ग़म, कुछ आंसू, टूटा दिल, बस और प्यारमें क्या पाया चोटीमें गुंथी हुई कलियोंकी मेहक अभी तक याद रही लाली होठोंकी मेरे लबों पर बरसोंके भी बाद रही  काजल आँखोंका मेघ घटाओंसा घिरकर मनपर आया तिरकरभी डूब गए यादोंमें, तब जाके कहीं सुकून आया  जिस शहर, गली, बाज़ारोंमें तेरे क़दमों की आहट हों  मेरे तो चारोंधाम वहीँ काशी, मथुरा, गंगा-तट हों तेरे होठों ने छुआ जिन्हें हर शब्द गीत बनकर आया  तुझपे ही लिखा जो लीखा अगर, तुझको ही गाया जो गाया  छुप छुप के मिलना और मिलनके बाद जुदाई का आलम  दो पल खुशियों के बीच तेरी यादें तेरे जानेका ग़म  मुड़के खोज रही आँखोंने पता मेरा जैसे पाया  झुकती पलकें मुस्काई ऐसे नाम मेरा लब पे आया 

जन्मदिन है

नाचो गाओ धूम मचाओ, जन्मदिन है  ख़ुशी से पागल हो जाओ, जन्मदिन है  नहीं मिलेगा मौका ऐसा या बहाना  दिल के अरमान बतादो ना छुपाना  उलटी गिनती हो भले इसे खूब मनाना  उम्र रही है बढ़ उसे भी भूल जाना  बाल हो गए कम के आओ, जन्मदिन है  स्टाइल के साथ टोपी लगाओ, जन्मदिन है  यारों की दुआ अशीषें पाओ, जन्मदिन है  मज़ाक का मत बुरा लगाओ, जन्मदिन है  पेट हो रहा गोल है उसको ढोल बनाना  ढीला कुरता पहन के उसको क्या छुपाना  पिज़्ज़ा बर्गर फ्रेंच फ्राइज है जमके खाना  आइसक्रीम औ चॉकलेट शेक भी खूब दबाना  बढे वजनसे मत घबराओ, जन्मदिन है  मन मन को टन करते जाओ, जन्मदिन है  खुद पर खुद काफिये मिलाओ, जन्मदिन है  नया नया कुछ लिखते जाओ, जन्मदिन है  बीते कल को कर याद है क्यों आंसू बहाना  जो भा जाए उसको ही गर्लफ्रेंड बनाना  बच्चे हो रहे बड़े अब उनसे क्या शर्माना  बीवी को तो रोज़ नयी स्टोरी सुनाना  कॉलेज वाली को फ़ोन घुमाओ, जन्मदिन है  टेबल टेनिस भी सिख जाओ, जन्मदिन है  भाभी से मेरी कविता छुपाओ, जन्मदिन है  ये ...

जन्मदिवस पर

मिली बोहत बधाइयाँ, शुभकामनायें पायीं  नए पुराने दोस्तों को हमारी याद आयीं  डायटके फरमान दरकिनार कर दिए गए  चॉकलेट और केक खूब खायी खिलायीं  वाट्सएप्प पर एक संदेसा उसका भी आया  पहनके वही कुरता जो हमने था दिलवाया  मेरी एक बिसराई कविता फिरसे जब गाईं  बरसों से बुझी मनमें एक ज्योत जलायीं  पूछा पत्नीसे रोज़ जन्मदिवस मनाएं क्या  युहीं यारों से अपनी तारीफें करवाएं क्या  मन की बातों को समझी और वो मुस्कायीं  पास बैठ नयी कविताकी भूमिका बतायीं 

भारत की बेटी

शाम को ऑफिस से निकलकर घर जाते हुए अक्सर वो सेहमी रहती अख़बारोंवाली वारदातें सच में सोच डरती रहती  दूर का सफर, बस और रिक्शेमें अजनबियों से घिरे हुए कुछ देर तक सहेलियां साथ होती आगे केवल अकेलापन रोज़ किसी न किसी सहेलीको फ़ोन लगा बात करती  घर तक इस डरसे की खाली देख बात न करने लगे बात से बात आगे न बढ़ने लगे ये न समझे की आसान है सार्वजनिक सामान है  आवारा न कहे इशारा न करे पास न आये उंगलिया न छुआए  नज़रें झुका के रखती है देखकर बैठती उठती है गर कोई पसंद भी हो मुस्कुराती नहीं कोई पहचान का हो  तो भी बुलाती नहीं अपने स्टॉप पे उतरकर रिक्शा पकड़ती  औरों से बचने खुदको  सिकोड़ती  घर पहुंचकर माँ बाबा को देख आँखों से ही मुस्कुरा देती चेहरेसे दुपट्टा हटाती छोटे भाई बहनसे दिनके हसीं किस्से सुनती और मनाती की आज़ाद भारतमें  बहनों को बस या रिक्शे में न आना पड़े शाम को ऑफिस से निकलकर