क्या सितम ढाया है, क्या बताऊँ तुमको वक़्त यूं देरसे जिंदगी में लाया है तुमको पहली बार देखा तो दीवाने हो गये थे तेरे
बेईमानी मोहब्बत में बस इतनी सी करते रहे हम साथ चाहे किसीके भी हों, तेरे थे तेरे ही रहे हम यूँ तो आवारा मुसाफिर सी गुज़ारी है जिंदगी लेकिन अब भी तेरे घर के सामने की छत पर ठहरे रहे हम तेरी झुल्फों तले बीतीं थी जो शामें हसीन