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No, I don't want to write

No, I don't want to write About love, longing, her silence, our fight  I don't want to write  I won't say that I'm sad coz we're far apart It won't matter one bit, I know in my heart  She may be sleeping right now  With her head resting on his chest While I'm awake like an idiot With senseless thoughts, one after next What did she wear today, blue or red Was it a saree, a skirt, a Jean or a dress Were her hair tied in a bun Did she sport a pony  Was it the day for the plait Or she had her long hair cut I think of her kajal suddenly  And of her bangles  Her tiny black bindi And the last seen curls  I remember her smile Reaching those doe eyes  Her playful banter with me Not so innocent lies The feel of her fingers in my hand The smell of her hair What I won't give to hug her Once more without care But I silence further memories  Of when she had left Handling the years of agony In which I wasn't deft  So, there won't be a poem I'm don...
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तुझे देख लेते हैं तो सहारा रहता है

तुझे देख लेते हैं तो सहारा रहता है  दिन ख़ुशनुमा मेरा सारा रहता है  जो लिखा, तुझपर ना हो फिर भी  तेरे ख़याल को इशारा रहता है  कल छू गईं थीं उँगलियाँ अपनी  मदहोश तबसे बेचारा रहता है  खुली ज़ुल्फ़ तो जो ये रूप निखरा  क़ैद मैं ही दिल हमारा रहता है  ऐनक लगी, बड़ी, काली आँखें, देख लें   तेरे दीवानों का गुज़ारा रहता है  रात ढले, तसव्वुर में तुझे लाये हुए  शायर इक, नाकारा रहता है 

तेरे ख़यालकी हकीकतको ठुकराए हुए

तेरे ख़यालकी हकीकतको ठुकराए हुए  टटोलता हूँ ज़ज़्बात खुद से छिपाये हुए  ये भी तो इक हवस है, तेरे इन्तेज़ार में  चल पड़े हैं फिर रास्तोंपे, भुलाये हुए  ये बिखरा-सा जुड़ा खुल ही जाये कहीं  तकते हैं यूँ उम्मीद को खौफ बताये हुए 

कभी मिलें तो पूछूँगा उनसे

कभी मिलें तो पूछूँगा उनसे, मेरे बाद कितनी शरारतें बचीं हैं तुझमें  पूछूँगा की केश फैशन में कटवाये या इसलिये की उन्हें अब सहलाता कोई नहीं  क्या अब भी बिना टक किये शर्ट के छोर खिंच लेती हो जब भर आये आँखें, या मेरी तरह अब रुलाता कोई नहीं एक छड़ी जो लेकर चलती थी, अब भी सम्भाले हो? ठहाके लगाते हुए चने और मूँगफली किसी अजनबी पर उछाले हो? पार्क के कोने में, काँधे पर सर रखे घंटों बैठना क्या याद है? कविता के ज़रिए सवाल मुझसे पूछना क्या याद है? क्या याद है कितनी देर तक ख़ामोश बैठ सकते थे अकेले हम  या वो बातें जो घंटों चलती थीं मगर सिरा नहिं मिलता था जिनका  वो साथ बैठे छु जाएँ जो उंगलियाँ अपनी, तब कि कपकपाहट  और जब मुझे बस स्टैंड आने में लेट हो, तब कि छटपटाहट  कोई तुझसे कुछ कहे तो मेरा लड़ जाना, या जाते हुए मुड़कर तेरा मुस्कुराना  वो चुंबन जो कभी लिये नहिं मगर दोनों ने मेहसूस किये  वो फिल्में देखना, बेसबब घूमना, वो जोरों से हंसना, वो नाराज़ होना  मेरे बाद ऐसी कितनी आदतें बचीं हैं तुझमें, कभी मिलें तो पूछूँगा उनसे

बेईमानी मोहब्बत में बस इतनी सी करते रहे हम

बेईमानी मोहब्बत में बस इतनी सी करते रहे हम  साथ चाहे किसीके भी हों, तेरे थे तेरे ही रहे हम  यूँ तो आवारा मुसाफिर सी गुज़ारी है जिंदगी लेकिन  अब भी तेरे घर के सामने की छत पर ठहरे रहे हम  तेरी झुल्फों तले बीतीं थी जो शामें हसीन 

नये साल बस यही दुआ चाहता हूँ

नये साल बस यही दुआ चाहता हूँ  दर्द हैं जो बन जाएँ दवा चाहता हूँ  जो किस्से जीये मगर दोहराये नहीं  अब शेरोंमें उनको कहा चाहता हूँ इक लड़की जो छोड़ चुकी शरारतें  फिरसे करे वो कोई खता चाहता हूँ  दो और दो का जोड़ पांच बनाने को  लबों से उसके होंठ छुआ चाहता हूँ  बात करके तुझसे अच्छा लगा दोस्त  बात यूँही करना रोज़ सखा चाहता हूँ मेरे कुछ ख्वाब प्रतीक्षामें हैं प्रयासके मैं उनका ये इंतज़ार मिटा चाहता हूँ  राज ज़ाहिर न हो जायें वक़्तसे पहले  ख्वाहिशों को खुदसे छिपा चाहता हूँ  फिर एक ख़याल घर कर चला मनमे  फिर उसे किताबमे लिखा चाहता हूँ  बस दिखा करे वो हररोज़ सुबहोशाम  आलावा इसके कुछ कहाँ चाहता हूँ  पहला दिन है नये साल का और मैं  राज नया आपको दिया चाहता हूँ