कभी मिलें तो पूछूँगा उनसे, मेरे बाद कितनी शरारतें बचीं हैं तुझमें
पूछूँगा की केश फैशन में कटवाये या इसलिये की उन्हें अब सहलाता कोई नहीं
क्या अब भी बिना टक किये शर्ट के छोर खिंच लेती हो जब भर आये आँखें, या मेरी तरह अब रुलाता कोई नहीं
एक छड़ी जो लेकर चलती थी, अब भी सम्भाले हो?
ठहाके लगाते हुए चने और मूँगफली किसी अजनबी पर उछाले हो?
पार्क के कोने में, काँधे पर सर रखे घंटों बैठना क्या याद है?
कविता के ज़रिए सवाल मुझसे पूछना क्या याद है?
क्या याद है कितनी देर तक ख़ामोश बैठ सकते थे अकेले हम
या वो बातें जो घंटों चलती थीं मगर सिरा नहिं मिलता था जिनका
वो साथ बैठे छु जाएँ जो उंगलियाँ अपनी, तब कि कपकपाहट
और जब मुझे बस स्टैंड आने में लेट हो, तब कि छटपटाहट
कोई तुझसे कुछ कहे तो मेरा लड़ जाना, या जाते हुए मुड़कर तेरा मुस्कुराना
वो चुंबन जो कभी लिये नहिं मगर दोनों ने मेहसूस किये
वो फिल्में देखना, बेसबब घूमना, वो जोरों से हंसना, वो नाराज़ होना
मेरे बाद ऐसी कितनी आदतें बचीं हैं तुझमें, कभी मिलें तो पूछूँगा उनसे
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