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Showing posts from April, 2023

मुस्कुराकर जब वो मेरा नाम लेते हैं

मुस्कुराकर जब वो मेरा नाम लेते हैं  दोनों हाथोंसे दिल को थाम लेते हैं  फिसलते नहीं अब नखरों पर उनके यूँ तजुर्बे और संयमसे काम लेते हैं  चलो खुद ही चलाते हैं खंजर खुदपर  ज़रा उनके हाथोंको आराम देते हैं  अन्जान हाथोंमें उंगलियां पिरोयीं जिसने  बेवफाई का हमको इल्जाम देते हैं  करते हैं यकीन तो खाते ही हैं धोका  एहतियात हालाँकि तमाम लेते हैं  

राम मुबारक हो तुमको

राम मुबारक हो तुमको  आख़िरकार अपना धाम मिला  कितनी सदियाँ भटके हो  अब जा करके आराम मिला  तुम और तुम्हारे होने पर  कई प्रश्न, अनेको तर्क चले  हर एक अदालतके आगे  सच जैसे तुम निर्भीक मिले  जुठलानेकी खातिर तुमको  भरसक झूठों ने यत्न किये  धर्म, हया, माँ-बाप सभी  बाज़ारोंमें ही त्याग दीये  वर्षों से जलती क्रांतिको  एक सुखद अंजाम मिला  राम मुबारक हो तुमको  आख़िरकार अपना धाम मिला कितने ताने कितने लांछन  तुमपर अबतक हैं उछल रहे  हर दिन एक नयी परीक्षाकी  अग्निसे जलकर निकल रहे  अपने मूल्योंके मानक पर  कलियुगमें तुमको तौल रहे  जाने-अनजाने धोबीकी  वही भाषा हम भी बोल रहे  इन कल्पित दोषोंको सरे  बाजार तुम्हारे जता रहे  तुम तो कहीं और के हो  भारतको ऐसा बता रहे  श्रद्धा को विजय, परिश्रमको  निश्चित ही ये परिणाम मिला  राम मुबारक हो तुमको  आख़िरकार अपना धाम मिला पानी पर पत्थर क्यों तैरे  संशय इसपर भी किये गये