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Showing posts from January, 2023

बंजारा

बंजारोंकी कहाँ किस्मत, बिस्तर अपना नसीब होता  ठहर जाते कुछ रोज़ जो पाँव, शायद तेरे करीब होता  एक सफरसे लौटा कल, फिर एक सफरको निकलना है मिलते कुछ देर तो गोदीमें सर रख, आज ये गरीब सोता  थकन उतरे कभी तो लिख लूँ नयी ग़ज़लें, किस्से सभी  अपने घरमें रेहता गर, तो ये मुसाफिर भी अदीब होता 

खूबसूरत लोग

सामने मेरे मेहफिलमें आज, ये खूबसूरत लोग  क्या अदा है क्या अंदाज़, कितने खूबसूरत लोग  खोल दूँ सब गिरहें, राज़ दिलके उजागर कर दूँ  सुनाएँ गूंजती तालयोंकी आवाज, ये खूबसूरत लोग 

जब भी पूछा घीसकर इन्कार किया

जब भी पूछा घीसकर इन्कार किया  बाहोंमे आयी तो शिद्दतसे मुझे प्यार किया  कितना झूठा हूँ सब पता तो है तुझे  हद है जो मेरे वादे पर ऐतबार किया  ना, नुकर, नहीं, मगर, लब बोले  आँखोंने उसकी खुलके एकरार किया  कसम से, शराबको छुआ तक नहीं मैंने  नशे में हूँ जबसे उनका दीदार किया  जब भी गुज़रा गली से, छुप गयी पर्देमें  शब-ओ-रोज़ जिसने मेरा इंतज़ार किया  फिर उसने रूखसे बालोंको हटाया है  फिर तीर मेरे जिगरके पार किया  काँप गए एक लम्स हुआ जो गलतीसे  उसी ग़लतीको फिर हमने बारबार किया  मेरी सब ज़िद संभाली, सारी बदमाशियां झेली  भला-बुरा जैसा भी हूँ, उसने स्वीकार किया  लबों से छू लिया गालोंको, शरमा गये फिर  चाहतका अपनी कुछ ऐसे इज़हार किया  उसकी खुशीको बँट गये खैरातमे खुद ही  मोहब्बत की है नहीं हमने व्यापार किया  तुम मेरी आखिरी मोहब्बत हो  सरे मेहफिल लो ये स्वीकार किया