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Showing posts from August, 2022

बहती नदिया

मेरे शहरमें वैसे तो कोई खास बात नहीं  कुछ बड़ी इमारतें हैं, बाकी शहरों जैसी ही  कई रास्ते हैं और उन पर चलते दौड़ते लोग  वही ग़म हैं और ख़ुशी, बाकी शहरों जैसे ही  अलग हैं तो बस तुम, इस बहती नदिया सी  और किनारे बैठ तुमको लिखता हुआ मैं 

रेहने दे

बोहत कुछ है केहने को मगर, खामोश रेहने दे  बात मान मेरे यार, ज़िद ना कर, खामोश रेहने दे  कल फिर उन्हें देख तमन्नाएँ गीत गाने लगीं  छेड़ ना दिल के तार यूँ, खामोश रेहने दे 

प्रतीक्षा

मेरी प्रतीक्षा को प्रतिफल दिलाये कोई  उसके घरका पता मुझे भी बताये कोई  कविताके ये फूल उन्हीं पर बरसाने हैं  किस गली है आना जाना, दिखाये कोई 

अजनबी

तेरी हर तस्वीर, हर रील को दसियों बार देख लिया  सब में वही खुले बाल, बड़ी बड़ी काजल लगी आँखें  और मुस्कुराता हुआ मासूम सा चेहरा  कुछ अनोखा नहीं है तुझमे, ना नाच ना ललचाती अदाएं  इंस्टाग्राम पर सैंकड़ों डोलती, लुभाती सुंदरियाँ दिखती हैं  मगर, ए अजनबी क्यूँ बार बार लौटता हूँ  तेरी प्रोफाइल पर  तेरी अवाजमे कहे हर शेरनी छू लिया दिलको मेरे  जलन होती है मुझे आईनेसे  जिसके सामने तुम बैठती हो  शायद, मुझे इश्क़ हो गया है तेरी शायरी से,  तेरी सादगी से, और तुझसे   क्या संभव है किसीसे बिना मिले प्रेम करना?  क्या ये इंतज़ार, ये तड़प, उसी प्रेम के लक्षण हैं?  बताना मुझे ए अजनबी, गर जान पाओ तो  क्यूंकि अब मेरे दिल ओ दिमाग पर तुम्हारे शब्द  तुम्हारा चेहरा छाया हुआ है हर समय  कोई नया शेर सूझता ही नहीं जो तेरे लिए ना हो  मेरी शायरी तुझमे समां गयी है शायद  तो इतनी बिनती मान लो,  मेरे हिस्सेके शेर भी तुम्हीं कह दो