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Showing posts from July, 2022

सावनकी दोपहर

अलसाई दोपहरोंमें सावनके बादलों को देख  एक कविता मनमें आकार लेने लगती है  जैसे हवाएं काले मेघ उड़ाकर मेरी छत पर ले आयीं  वैसे ही ये काव्य एक नाम लाकर जिह्वा पर छोड़ गया  नयन उठाये, हृदयमे आशा भरे, आकाश निहार रहा हूँ  लेखनी कागज़ पर टिकाये वैसे ही प्रतीक्षा में हूँ की  अब फटेंगे बादल भावनाओंके, अब बरसेंगे अभ्र अब ख़याल आकार लेंगे, अब शब्द बनेंगे शायरी  और प्यासी धरा तृप्त होगी बरखा के आने पर जैसे  मेरे उर में भी वैसा ही हर्ष व्याप्त होगा काव्य बन जानेपर  यकायक पवन तेज़ चल पड़े, बादल बिखर गए  अचला फिर इन्तेज़ारमे रह गयी, वर्षा नहीं आयी  कदाचित ये नज़्म भी अधूरी रेह जाएगी आज  और वो नाम जबान पर ठेहरेगा नहीं, दिलमे लौट जायेगा